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                  आठ क्षणिकाएँ 
                  1 
                  बरसा फिरता  
                  कहाँ-कहाँ 
                  प्यासा का प्यासा फिर भी 
                  पागल है  
                  कितना बादल 
                   
                  2 
                  हम हों  
                  बगिया में  
                  कविता और स्वर हों 
                  फिर तुम हो न हो। 
                  3 
                  होती नहीं  
                  ज़रूरत किसी को फूलों की 
                  खुशबू जब फैलती है  
                  लोग अपना ही लेते हैं। 
                  4 
                  जाएँगे अकेले  
                  हम कहाँ 
                  जाएँगे गाहे बगाहे  
                  चार काँधे साथ। 
                  5 
                  रो भी नहीं सकते हम  
                  खुल कर यार 
                  उसके लिए भी  
                  चाहिए एक काँधा प्यार। 
                  6 
                  पड़े-पड़े उलझ जाते हैं 
                  क्यों धागे  
                  रिश्ते 
                  7 
                  एक नाज़ुक किरण 
                  कब किस तरह 
                  किस मूरत पर पड़े 
                  कब किसको किस पर 
                  प्यार आजाए 
                  क्या पता 
                  8 
                  लव कॉम पर जाइए 
                  प्यार अपना पाइए 
                  झूठा सच 
                  09 फरवरी 2007  |