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अनुभूति में प्रेम माथुर की रचनाएँ

कविताओं में-
2 अक्तूबर की याद में
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गुलमोहर
जड़ें
धूप खिली है
बापू की याद

क्षणिकाओं में-
आठ क्षणिकाएँ

संकलन में-
नया साल- जश्न नए साल का

  बापू की याद

एक अकेला
दुबला पतला
नई कँटीली राह पर
चल पड़ा था अडिग निडर
यों कि जैसे खुद भगवान
चल रहा हो साथ
पकड़े हाथ।

सत्य ही है ईश्वर
ईश्वर ही केवल सत्य है
जान लिया था उस आत्मज्ञानी ने
कलियुग के उस महात्मा ने
किसी और युग में वह कहलाता
अवतार भगवान का
या कहलाता मसीहा सत्य का
ईश्वर का।

'एकला चालो रे' गाया था टैगोर ने
शायद उसके ही लिए
जब वो चल पड़ा अकेले ही
दांडी की राह पर
और हज़ारों चल पड़े थे साथ
दंड को आह्यान देते
उस कँटीली राह पर
'नमक हरामी' करने फिरंगी सरकार से
बनाने चम्मच भर नमक
कानून को देते चुनौती
सत्य आग्रह से।

पर आज सत्य की धुरी है डिगी हुई
डगमगाता चल रहा है रथ समय का
सत्ता की लड़ाइयों में।
खो गया है अर्थ
दोगली जबानों में।
राज है असत का
औसत आदमी को दलते दलों का
क्रूर कूटनीतिज्ञों का।
कर रहे हैं इन्सानियत का खून
करते करवाते हैं कत्ल हज़ारों का
भगवान खुदा गौड के नाम पर।
करते हैं युद्ध भी वे
'सत्य ईमान' के नाम पर

इनको
जो हैवान को भी करते हैं मात
इनको सुमति देगा कौन
ईश्वर अल्ला या भगवान?

११ अगस्त २००८

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