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कभी जिन्दगी ने
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बच्चे से बस्ता है भारी
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मुझको वर दे तू
मुस्कुरा के हाल कहता
मेरी यही इबादत है
मैं डूब सकूँ
रोकर मैंने हँसना सीखा
रोग समझकर
साथी सुख में बन जाते सब
हाल पूछा आपने

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फ़ितरत 
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सारांश
सिफ़र का सफ़र

  विश्व बना है ग्राम

विश्व बना है ग्राम देखिये
है साजिश, परिणाम देखिये

होती खुद की जहाँ जरूरत
छू कर पैर प्रणाम देखिये

सेवक ही शासक बन बैठा
पिसता रोज अवाम देखिये

दिखते हैं गद्दी पर कोई
किसके हाथ लगाम देखिये

और कमण्डल चोर हाथ में
लिए तपस्वी जाम देखिये

बीते कल के अखबारों सा
रिश्तों का अन्जाम देखिये

वफा, मुहब्बत भी बाजारू
मुस्कानों का दाम देखिये

धीरे धीरे देश के अन्दर
सुलग रहा संग्राम देखिये

चाह सुमन की पुरी में अल्ला
और काबा में राम देखिये 

१६ अप्रैल २०१२

 

 

 
 

 

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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