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मुझको वर दे तू
मुस्कुरा के हाल कहता
मेरी यही इबादत है
मैं डूब सकूँ
रोकर मैंने हँसना सीखा
रोग समझकर
साथी सुख में बन जाते सब
हाल पूछा आपने

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इंसानियत
एहसास
कसक
ज़िंदगी
द्वंद्व
दर्पण
फ़ितरत 
संवाद
सारांश
सिफ़र का सफ़र

 

आने वाले कल का स्वागत

आने वाले कल का स्वागत, बीते-कल-से-सीख-लिया
नहीं किसी से कोई अदावत, बीते-कल-से-सीख-लिया

भेद यहाँ पर ऊँच नीच का, हैं आपस में झगड़े भी
ये दुनिया-तो-सिर्फ-मुहब्बत,-बीते-कल-से-सीख-लिया

हंगामे होते, होने दो, इन्सां तो सच बोलेंगे
सच कहना है नहीं इनायत, बीते-कल-से-सीख-लिया

यह कोशिश प्रायः सबकी है, हों मेरे घर सुख सारे
क्या-सबको-मिल-सकती-जन्नत,-बीते-कल-से-सीख-लिया

गर्माहट टूटे रिश्तों में, कोशिश हो, फिर से आए
क्या-मुमकिन-है-सदा-बगावत,-बीते-कल-से-सीख-लिया

खोज रहा मुस्कान हमेशा, गम से पार उतरने को
इस-दुनिया-से-नहीं-शिकायत, बीते-कल-से-सीख-लिया

भागमभाग मची न जाने, किसको क्या क्या पाना है
सुमन सुधारो खुद की आदत, बीते-कल-से-सीख-लिया

१६ अप्रैल २०१२

 

 

 
 

 

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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