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अनुभूति में श्यामल सुमन की रचनाएँ-

मुक्तक में-
चेतना (चार मुक्तक)

दोहों में-
दोहों में व्यंग्य
नेता पुराण

हार जीत के बीच में

अंजुमन में-
अभिसार ज़िंदगी है
कभी जिन्दगी ने
जीने की ललक
बच्चे से बस्ता है भारी
बाँटी हो जिसने तीरगी
मुझको वर दे तू
मुस्कुरा के हाल कहता
मेरी यही इबादत है
मैं डूब सकूँ
रोकर मैंने हँसना सीखा
रोग समझकर
साथी सुख में बन जाते सब
हाल पूछा आपने

कविताओं में-
आत्मबोध
इंसानियत
एहसास
कसक
ज़िंदगी
द्वंद्व
दर्पण
फ़ितरत 
संवाद
सारांश
सिफ़र का सफ़र

  हाल पूछा आपने

हाल पूछा आपने तो, पूछना अच्छा लगा
बह रही उल्टी हवा से, जूझना अच्छा लगा

दुख ही दुख जीवन का सच है, लोग कहते हैं यही
दुख में भी सुख की झलक को, ढ़ूँढ़ना अच्छा लगा

हैं अधिक तन चूर थककर, खुशबू से तर कुछ बदन
इत्र से बेहतर पसीना, सूँघना अच्छा लगा

रिश्ते टूटेंगे बनेंगे, जिन्दगी की राह में
साथ अपनों का मिला तो, घूमना अच्छा लगा

घर की रौनक जो थी अबतक, घर बसाने को चली
जाते जाते उसके सर को, चूमना अच्छा लगा

कब हमारे, चाँदनी के बीच बदली आ गयी
कुछ पलों तक चाँद का भी, रूठना अच्छा लगा

दे गया संकेत पतझड़, आगमन ऋतुराज का
तब भ्रमर के संग सुमन को, झूमना अच्छा लगा

२७ अप्रैल २००९

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