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                  अनुभूति में 
                  राजेन्द्र चौधरी की रचनाएँ- 
                   
                  छंदमुक्त में-आधार
 पुनरावृत्ति
 लोरियाँ कविताओं में
 
                  मुक्तक में-मुक्तक
 कुछ  मुक्तक और
 
 अंजुमन में-
 अपनों के हाथों
 कैकेयी की
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                  कैकेयी की 
                  कैकेयी की कुंठाओं के दुष्परिणाम 
                  कहाँ ठहरे हैंषडयन्त्रों की मन्थराओं के दिल से रिश्ते गहरे हैं।
 
 संवेदन की वैदेही का कैसे हो सन्मान सुरक्षित,
 हर मानस की पंचवटी पर खर-दूषण के ही पहरे हैं।
 
 अर्थहीन हो गयीं जहाँ पर संयम की लक्ष्मण रेखाएँ,
 मानवता की मर्यादा के आकर राम वहाँ ठहरे हैं।
 
 अब स्वार्थ परस्पर पोषित होना कहलाती सुग्रीव मित्रता,
 ऐसी तरल मान्यताओं के अंगद पाँव कहाँ ठहरे हैं।
 
 कितना लघु रूप धारेगा संकल्पों का पवनपुत्र भी,
 तृष्णा की सुरसाओं के अब मुख जाने कितने गहरे हैं।
 
 सोने की लंका में निष्फल विश्वासों की राम मुद्रिका,
 साहस की त्रिजटा गूँगी है, मन्त्र विभीषण के बहरे हैं।
 
 आदर्शों के लव-कुश किससे पूछें अपनी राम कहानी,
 सीता समा गयी धरती में, कौशलपुर वासी बहरे हैं।
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