| 
                  अनुभूति में 
                  राजेन्द्र चौधरी की रचनाएँ- 
                   
                  छंदमुक्त में-आधार
 पुनरावृत्ति
 लोरियाँ कविताओं में
 
                  मुक्तक में-मुक्तक
 कुछ  मुक्तक और
 
 अंजुमन में-
 अपनों के हाथों
 कैकेयी की
 |  | 
                  
                  अपनों के हाथों 
                  
                   
                  अपनों के हाथों जब तलक नश्तर नहीं 
                  मिलतेहम आदमी से आदमी बन कर नहीं मिलते
 
 ऊँचाइयों की होड में प्राचीर ही प्राचीर हैं,
 इस शहर में नींव के पत्थर नहीं मिलते।
 
 आदमी की आस्तीनों में अधिक महफूज़ हैं,
 इसलिए जंगल में अब अजगर नहीं मिलते।
 
 अब नज़र से जिस्म छिल जाने का खौफ है,
 आजकल पोशाक में अस्तर नहीं मिलते।
 
 पीडा के पाँव में यहाँ घुंघरू हैं इसलिए,
 दर्द की वाणी को अब अक्षर नहीं मिलते।
 
                  पंख उनके बुझती शम्मा भी जला देती 
                  है जो,बालिश्त भर का फासला रख कर नहीं मिलते।
 |