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                  अनुभूति में 
                  राजेन्द्र चौधरी की रचनाएँ- 
                   
                  छंदमुक्त में-आधार
 पुनरावृत्ति
 लोरियाँ कविताओं में
 
                  मुक्तक में-मुक्तक
 कुछ  मुक्तक और
 
 अंजुमन में-
 अपनों के हाथों
 कैकेयी की
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                  आधार 
                   
                  जब भी कोई ऊँची इमारत मेरी नज़र से 
                  गुज़रती हैतो उसकी भव्यता निगाहों से दिल में उतरती है
 नज़र को इमारत के बुलंद कंगूरों से वास्ता है
 लेकिन मेरा मन ठिठकता है, कुछ और तलाशता है
 वो जो दीख नहीं पाता लेकिन इस ऊँचाई का आधार है
 मेरे मन को कंगूरों से नहीं, नींव के पत्थरों से प्यार है
 वो पत्थर जो धरती में भी दस हाथ जाके धँसता है
 और खुशी-खुशी गुमनाम अंधेरी गुफ़ा में फँसता है
 ताकि इस इमारत को सौ हाथ ऊँची बुलंदी मिले
 और इसके कंगूरों को नया रूप, नयी रोशनी मिले
 वो पत्थर जिसने इमारत से अपने जीवन का मूल्य नहीं माँगा
 और वर्तमान के कांधे पर कभी अतीत का नाम नहीं टाँगा
 वो पत्थर हर मंदिर के कलश, हर मस्जिद की गुंबद से ऊँचा है
 क्योंकि उसने इस इमारत को अपने प्राण उत्सर्ग से सींचा है
 मैं और तुम भी वर्तमान के लिए रीतते किसी अतीत के वंश हैं
 निस्वार्थ गहराई तक आकर जुड़ो तो, हम किसी नींव के अंश हैं
 लेकिन आज हर तरफ़ हर किसी को परकोटों का चाव है
 आज मेरे दोस्त, नींव के पत्थरों का अभाव है
 लेकिन रख सको तो याद रखना
 ऊँचाई सापेक्ष है, मिटती रहती है, जीवन आधार का होता है
 भवन उद्घाटित होते हैं, पूजन आधार का होता है
 पूजन आधार का होता है।।
 
                  २४ अगस्त २००६  |