| लम्बा खत 
                  मैंने पढ़ा तुम्हारा लम्बा खत
 जैसे किसी सपने की परी को सामने आ खड़े होने का निमंत्रण
 या किसी नवोढ़ा पत्ती की रंजित देह को
 न बदलने का नियंत्रण;
 या फिर अपने कोमल पत्रों में सिमटी
 कली को, न खिलने की पाबंदी
 अथवा संभव करना सितारों और सूरज की
 असंभव युगलबन्दी -
 ऐसा विश्वास दिखा तुममेंऐसी क्षमता दिखी
 कि जहाँ न अक्षर थे
 और न ही शब्द,
 जहाँ न सम्बोधन था
 और न ही संवाद-
 लिखा तुमने एक लम्बा खत।
 बरसते पानी से प्रवाह लेकरपक्षियों के संवाद से संवाद लेकर
 सतरंगी इन्द्रधनुष से सतरंगी छवि पाकर
 खड़ी कर दी तुमने - एक आत्मा।
 लिखते रहो ऐसे ही आहट को टटोलते हुए,
 देह नहीं
 फूल नहीं
 गंध को खंगालते हुए।
 २९ सितंबर २००८ |