| संध्या का सूर्य 
                  संध्या का सूर्य दिखाई देता है
 निस्तेज-शक्तिहीन
 लगता है जैसे कोई छाया हो, बिंब हो।
 अपने तेजस्वी स्वरूप का।
 लगता नहीं वही सूर्य हैसभी को तपाने वाला
 कोई साहस नहीं कर सकता था
 जिसे देखने का।
 अब वही अस्त होने चला हैक्षीण हो गया है
 सभी देखते हैं उसकी ओर
 जैसे हँस रहे हों
 उसकी कमज़ोरी पर, असमर्थता पर
 भूल जाते हैं-उन्हें भी अस्त होना है
 एक दिन उन्हें भी अस्त होना है
 २४ मार्च २००८ |