| कल्पना और विश्वास देखकर साकारअपनी कल्पना को सामने
 स्तब्ध, हतप्रभ रह गया हूँ।
 रंग-रूप बिलकुल वही हैजो स्वप्न में देखा कभी था।
 नाक-नक्श, बाकी सभी कुछ
 मेल खाता है उसी से
 जो चित्र मैंने गढ़ लिया था
 स्वप्न भंग होने के बाद।
 सोचता था- संभव नहीं है,कि सामने मिल जाएगा
 था चित्र जिसका बंद हरदम
 पास मेरे, मन के भीतर।
 तब यह द्वंद्व मेरे मन उठा-अब स्वप्न में हूँ
 या जागता मैं देखता हूँ,
 कल्पना को साकार सामने।
 जब विश्वास मुझको हो गयानींद में बिलकुल नहीं हूँ,
 जागकर ही देखता हूँ
 यह चित्र, जो उसने गढ़ा है।
 कर साकार मेरी कल्पना को सामने
 स्तब्ध मुझको कर दिया है।
 तभी अचानकयह चित्र, जो उसने गढ़ा है।
 कर साकार मेरी कल्पना को सामने
 स्तब्ध मुझको कर दिया है।
 तभी अचानकयह ज्ञान मुझको आ गया,
 जो भी चित्र हम सब गढ़ रहे हैं
 साकार वे होकर रहेंगे।
 विश्वास यदि हमको रहेगा-
 अपनी कल्पना पर और
 शक्ति पर उसकी हमेशा।
 चित्र सब साकार होंगेविश्वास यदि हमको रहेगा-
 अपनी कल्पना पर और
 शक्ति पर उसकी हमेशा।
 चित्र सब साकार होंगेचित्र सब साकार होंगे।।
 २४ मार्च २००८ |