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  प्राप्ति और प्रतीति 
परिंदों, 
तुम आज़ाद हो, 
उड़ो, ऊँचे और ऊँचे, 
जहाँ, सफलता का दृश्य, 
बाट जोहता है। 
जहाँ से कोई योगी, 
पहले पहल सोचता है ? 
इस आव्हान का असर, 
एक पाखी ने फड़फड़ाए पर, 
टकराकर, जाने किस से - 
गिर गया -विस्तृत बयाबान में, 
और 
तब से अब तक हम, 
आप और मैं. . . 
ताड़ के पत्तों से, 
किताबों के जंगल तक- 
अन्वेषणरत- 
खोजते- 
कराहों का कारण।  
24 अप्रैल 2007 
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