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                   दौर 
ये रातों में सूरज के निकलने का दौर है 
आस्तीनों में साँपों के पलने का दौर है।। 
बेपर्दगी, नुमाइशें और बेशर्म निगाहें 
हर दौर से बदतर है, संभलने का दौर है। 
तारीफ़ सामने मेरी, फिर ज़हर से बयान, 
सबको पता है जीभ, फिसलने का दौर है। 
हम भी हो नामचीन, सबसे मिले सलाम, 
ओहदों से पदवियों से, जुड़ने का दौर है। 
हर राह कंटीली है, हर साँस है घायल, 
अपनी ज़मीन छोड़ के, चलने का दौर है। 
इस दौर में किस-किस की शिकायत करें 'मुकुल',  
ये दौर तो बस खुद को, बदलने का दौर है। 
24 अप्रैल 2007 
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