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 माँ  
छाँह नीम की तेरा आँचल, 
वाणी तेरी वेद ऋचाएँ। 
सव्यसाची कैसे हम तुम बिन, 
जीवन पथ को सहज बनाएँ।। 
कोख में अपनी हमें बसाके, 
तापस-सा सम्मान दिया।। 
पीड़ा सह के जनम दिया- माँ, 
साँसों का वरदान दिया।। 
प्रसव-वेदना सहने वाली, कैसे तेरा कर्ज़ चुकाएँ।। 
ममतामयी, त्याग की प्रतिमा- 
ओ निर्माणी जीवन की। 
तुम बिन किससे कहूँ व्यथा मैं- 
अपने इस बेसुध मन की।। 
माँ बिन कोई नहीं, 
सक्षम है करुणा रस का ज्ञान कराएँ। 
तीली-तीली जोड़ के तुमने  
अक्षर जो सिखलाएँ थे।। 
वो अक्षर भाषा में बदलें- 
24 अप्रैल 2007 
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