अनुभूति में
बृजेश कुमार शुक्ल की रचनाएँ-
छंदमुक्त
में-
तारों के जाल
मधुर गर्जना
संकलन में-
वर्षा मंगल–
मेघदूत
गाँव में अलाव –
अलाव,
कोमल गीत
होली–
होली के अदोहे,
क्षणिकाएँ
प्रेम गीत –
प्रिय मिलन
गुच्छे भर अमलतास– गर्मी दो शब्द चित्र,
गर्मी है अनमोल व रेत पर विश्राम
पिता की तस्वीर–
सतत नमन
ज्योति पर्व–
रंगरलियाँ
क्षणिकाएँ-
गर्मी की शाम,पनघट,
अचानक,
छाँव में,
गर्मी में, वर्षा,
पहली फुहार, बिजलियाँ |
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तारों के जाल
तारों के जाल में
कागज के फूल सा
भटकता हुआ
मन खुशबू की तलाश में
उँगलिया चलती रही
खिडकियाँ खुलती रही
लोग मिलते रहे
भावनाएँ शब्दों में ढलती रही
भटकता रहा मन यथार्थ की तलाश में
अचानक
खुली खिडकी में एक अंजान सी मुलाकात
दे गयी चाँद की शीतलता
धुंध!
छट गयी मन की
पग बढ़ चले लक्ष्य की ओर
तारों के जाल में
नयी राह मिल गयी
भावनाओं एवं संवेदनाओं की अभिव्यक्ति
दे रही नयी अनभूति
भटकते हुए मन को
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