बने रहे जो जीवन भर
परिवार का संबल
माँ का अटूट विश्वास
अपनी भुजाओं में समेटे
कराते पूर्ण सुरक्षा का अहसास
जीवन में सफलता का
सोपान बनते,
त्याग अपना निज वैभव
संसार,
जो संस्कारों का बीज रहे रोपते
बेल बढ़ाते अनुशासन की
आत्मविश्वास के दीप में
कठोर श्रम की डाल बाती
टूटते विश्वास
क्षीण होते उत्साह में,
नई चेतना का करते रहे
संचार
आज जब
बरसों से पलता
सपना साकार हुआ
आकाश जैसी विशालता
हृदय में सागर की गहराई जिनके
छू उनके चरणों की रज
करता सतत नमन।।
- बृजेश कुमार शुक्ला
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