मकरन्द भरी मन्द-मन्द बहे फागुनी
बयार
उषा की लालिमा करे हृदय का राग शृंगार
नैनों को बरबस लुभाती खेतो की
हरियाली
अबीर गुलाल में घुली हुई पलाश की लाली
घर-आँगन, चौबारे, आज रंगो की छाई धूम
होली का उल्लास,गूँजे झाँझ-मजीरों का नाद
भीगे तन, खिले मन, चढा प्रियजन का
स्नेह रंग
साम गान की सुमधुर ध्वनि मादकता के संग
कई रंग देखे, कई गीत गाये,
होली का मंगल पर्व पराग भरे पुष्प खिलाय
आत्म सर्मपण की भावना का प्रतीक होली
दुश्मनों को गले लगाती अजनबी को हँसकर मिलाती
बृजेश कुमार शुक्ला |