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तसव्वुर का नशा
दिल मेरा
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मना नहीं सकता
सोच का इक दायरा

कुंडलिया में-
ऐसी चली बयार (पाँच कुंडलिया)

अंजुमन में-

काश होता मजा
गरीबों को फकत
घास के झुरमुट में
जो व्यवस्था
तलवारें दोधारी क्या
तीरो-तलवार से
तेरी तस्वीर को
दिल से उसके जाने कैसा
नज़र में रौशनी है
बड़ी तकलीफ देते हैं
बाजार में बैठे
राह उनकी देखता है
रेशा-रेशा, पत्ता-बूटा
साधना कर
हार किसी को

 

तसव्वुर का नशा

तसव्वुर का नशा गहरा हुआ है
दिवाना बिन पिए ही झूमता है

गुज़र अब साथ भी मुमकिन कहाँ था
मैं उसको वो मुझे पहचानता है

गिरी बिजली नशेमन पर हमारे
न रोया कोई कैसा हादसा है

बुलन्दी नाचती है सर पे चढ़के
कहाँ वो मेरी जानिब देखता है

जिसे कल गैर समझे थे वही अब
रगे-जां में हमारी आ बसा है

१ मई २०२४

 

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