अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में महावीर उत्तरांचली की रचनाएँ-

नयी रचनाओं में-
तसव्वुर का नशा
दिल मेरा
नज़र को चीरता
मना नहीं सकता
सोच का इक दायरा

कुंडलिया में-
ऐसी चली बयार (पाँच कुंडलिया)

अंजुमन में-

काश होता मजा
गरीबों को फकत
घास के झुरमुट में
जो व्यवस्था
तलवारें दोधारी क्या
तीरो-तलवार से
तेरी तस्वीर को
दिल से उसके जाने कैसा
नज़र में रौशनी है
बड़ी तकलीफ देते हैं
बाजार में बैठे
राह उनकी देखता है
रेशा-रेशा, पत्ता-बूटा
साधना कर
हार किसी को

 

नजर को चीरता

नजर को चीरता जाता है मंज़र
बला का खेल खेले है समन्दर

मुझे अब मार डालेगा यकीनन
लगा है हाथ फिर क़ातिल के खंजर

है मकसद एक सबका उसको पाना
मिल मस्जिद में या मंदिर में जाकर

पलक झपकें तो जीवन बीत जाये
ये मेला चार दिन रहता है अक्सर

नवाज़िश है तिरी मुझ पर तभी तो
मेरे मालिक खड़ा हूँ आज तनकर

१ मई २०२४
 

 



 

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter