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नयी रचनाओं में-
तसव्वुर का नशा
दिल मेरा
नज़र को चीरता
मना नहीं सकता
सोच का इक दायरा

कुंडलिया में-
ऐसी चली बयार (पाँच कुंडलिया)

अंजुमन में-

काश होता मजा
गरीबों को फकत
घास के झुरमुट में
जो व्यवस्था
तलवारें दोधारी क्या
तीरो-तलवार से
तेरी तस्वीर को
दिल से उसके जाने कैसा
नज़र में रौशनी है
बड़ी तकलीफ देते हैं
बाजार में बैठे
राह उनकी देखता है
रेशा-रेशा, पत्ता-बूटा
साधना कर
हार किसी को

 

दिल मेरा

दिल मेरा जब किसी से मिलता है
तो लगे आप ही से मिलता है

लुत्फ़ वो अब कहीं नहीं मिलता
लुत्फ़ जो शा'इरी से मिलता है

दुश्मनी का भी मान रख लेना
जज़्बा ये दोस्ती से मिलता है

खेल यारो! नसीब का ही है
प्यार भी तो उसी से मिलता है

है "महावीर" जांनिसारी क्या
जज़्बा ये आशिक़ी से मिलता है

१ मई २०२४


 

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