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नज़र में रौशनी है
बड़ी तकलीफ देते हैं
बाजार में बैठे
राह उनकी देखता है
रेशा-रेशा, पत्ता-बूटा
साधना कर
हार किसी को

 

मना नहीं सकता

आपको मैं मना नहीं सकता
चीरकर दिल दिखा नहीं सकता

इतना पानी है मेरी आँखों में
बादलों में समा नहीं सकता

तू फरिश्ता है दिल से कहता हूँ
कोई तुझसा मैं ला नहीं सकता

हर तरफ़ एक शोर मचता है
सामने सबके आ नहीं सकता

कितनी ही शौहरत मिले लेकिन
क़र्ज़ माँ का चुका नहीं सकता

१ मई २०२४

 

 



 

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