| रेत की बेचैन नदी ता-हद्देनज़र रेत की बेचैन नदी 
                  हैवो किसको बताए कि उसे प्यासी लगी है।
 आई जो कभी लौट के लाएगी सितारे,इक लहर जो मिट्टी का दीया ले के गई है।
 क्या जाने उसे भी कोई बनवास 
                  मिला हो,घर लौट के आने में जिसे उम्र लगी है।
 जंगल के दरख्तों, ज़रा तुम 
                  जागते रहना,इक लड़की बयाबां में तने-तन्हा खड़ी है।
 मैं खौफज़दा होके उसे ढूँढ़ रहा 
                  हूँकालीन पे जलती हुई जो सींक गिरी है।
 हर रोज़ कलैंडर की न तारीखें 
                  गिनाकर,जीना है तो जीने के लिए उम्र पड़ी है।
 ऐ चोर, चुरा ले तू कोई दूसरा 
                  हैंगरइस पर मेरे माज़ी की फटी शर्ट टंगी है।
 रावण मेरे अंदर का मरा है न 
                  मरेगाऐ रामचन्दर, तुझसे मेरी शर्त लगी है।
 १६ अप्रैल २००३ |