| रस्ता इतना अच्छा 
                  था रस्ता इतना अच्छा थापाँव का छाला हँसता था
 कमरे में तारीकी थीछत पे चाँद टहलता था
 पत्थर का था फूल अजबतितली को धमकाता था
 दुनिया के हर मेले मेंसच बेचारा तनहा था
 गए वक्त का सरमायाखाकदान में रक्खा था
 आज डाकिया अश्कों कीडाक बाँटने आया था
 बचपन का फोटो देखातब मैं कितना अच्छा था
 बुझे हुए सन्नाटे मेंदुख का दीपक जलता था
 ज्ञानी - ध्यानी सब झूठेमस्त कलंदर सच्चा था!
 १६ अप्रैल २००३ |