| बात करता है 
                  मेरी औकात का ऐ दोस्त शगूफा न बनाकृष्ण बनता है तो बन, मुझको सुदामा न बना।
 वर्दियों की तरह निकला है पहनकर 
                  इनको,अपने ज़ख्मों का तू इस कदर तमाशा न बना।
 कोई चिठ्ठी, न परिंदा न दरों पर 
                  दस्तक,मेरे भगवान, मुझे इतना अकेला न बना।
 ये न हो कि तू किसी पत्थर में 
                  बदल जाएइतना गहरा किसी दीवार से रिश्ता न बना।
 एक मौसम यहाँ बारिश का भी होता 
                  है 'विवेक'अपने गत्ते का मकाँ इतना भी अच्छा न बना।
 १६ अप्रैल २००३ |