अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में दिगंबर नासवा की
रचनाएँ -

नयी रचनाओं में-
उफ तुम भी न
तस्वीर
माँग लेने के लिये
सपने पालने की कोई उम्र नहीं होती
हैंग ओवर

छंदमुक्त में-
डरपोक
प्रगति
प्रश्न
बीसवीं सदी की वसीयत
रिश्ता

गीतों में-
आशा का घोड़ा
क्या मिला सचमुच शिखर
घास उगी
चिलचिलाती धूप है

पलाश की खट्टी कली

अंजुमन में-
आँखें चार नहीं कर पाता
प्यासी दो साँसें
धूप पीली
सफ़र में
हसीन हादसे का शिकार

संकलन में-
मेरा भारत- हाथ वीणा नहीं तलवार
देश हमारा- आज प्रतिदिन
शुभ दीपावली- इस बार दिवाली पर

 

सपने पालने की कोई उम्र नहीं होती

वो अक्सर उतावली हो के बिखर जाना चाहती थी
ऊँचाई से गिरते झरने की बूँद सरीखी
और जब बाँध लिया आवारा मोहब्बत ने उसे
उतर गई अँधेरे की सीढ़ियाँ आँखें बंद किए

ये सच है वो होता है बस एक पल
बिखर जाने के बाद समेटने का मन नहीं होता जिसे

उम्र की सलेट पर जब सरकती है ज़िंदगी
कायनात खुद-ब-खुद बन जाती है चित्रकार
हालाँकि ऐसा दौर कुछ समय के लिए आता है सबके जीवन में

(ओर वो भी तो इसी दौर से गुज़र रही थी
मासूम सा सपना पाले)

फिर आया तनहाई का लम्बा सफ़र

उजली बाहों के कई शहसवार वहाँ से गुज़रे
पर नहीं खुला सन्नाटों का पर्दा
उम्र काफी नहीं होती पहली मुहब्बत भुलाने को
जुम्बिश खत्म हो जाती है आँखों की
पर यादें ...
वो तो ताजा रहती हैं जंगली गुलाब की खुशबू लिए

ये जीत है आवारा मुहब्बत की या हार उस सपने की
जिसको पालने की कोई उम्र नहीं होती

१ फरवरी २०१९

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter