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अनुभूति में दिगंबर नासवा की
रचनाएँ -

छंदमुक्त में-
डरपोक
प्रगति
प्रश्न
बीसवीं सदी की वसीयत
रिश्ता

गीतों में-
आशा का घोड़ा
क्या मिला सचमुच शिखर
घास उगी
चिलचिलाती धूप है

पलाश की खट्टी कली

अंजुमन में-
आँखें चार नहीं कर पाता
प्यासी दो साँसें
धूप पीली
सफ़र में
हसीन हादसे का शिकार

संकलन में-
मेरा भारत- हाथ वीणा नहीं तलवार
देश हमारा- आज प्रतिदिन
शुभ दीपावली- इस बार दिवाली पर

 

रिश्ता

जिस दिन
हमारे रिश्ते की अकाल मृत्यु हुई
कुकुरमुत्ते की तरह तुम्हारी यादें सर उठाने लगीं

कंबल में जमी धूल सी तुम
तमाम कोशिशों के बावजूद
झाड़ी नहीं गयीं मुझसे
सफेदी की अनगिनत परतों के बाद भी घर की दीवारें
तुम्हारी यादों के मकड़-जाल से अटी पड़ी हैं
बारिश में उतरी सीलन सी तुम्हारी गंध
घर के कोने कोने में बस गयी है
यादों की धूल वेक्युम चलाने के बावजूद
शाम होते होते
जाने कौन सी खिड़की से चुपचाप चली आती है
केतली से उठती भाप के साथ
हर सुबह तुम मेरे नथुनों में घुसने लगती हो
जब कभी आईना देखता हूँ
बालों में उँगलियाँ फेरने लगती हो
साफ करने पर भी
पुरानी गर्द की तरह
आइने से चिपकी रहती हो
घर के कोने कोने में तुम्हारी याद
चींटियों की तरह घूमने लगी है
स्मृतियों की धूल
कब जूतों के साथ घर आ जाती है
पता नहीं चलता

मैं जानता हूँ
इस रिश्ते की तो अकाल मृत्यु हो चुकी है
और यादों की धूल भी समय के साथ बैठ जाएगी
पर नासूर बने ये जख्म
क्या कभी भर पाएँगे?

१४ अप्रैल २०१४

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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