अनुभूति में
भूपेन्द्र सिंह
की रचनाएँ-
अंजुमन में-
जो दुश्मन हुआ
तेरी इस ख़ुशनुमाई
दुश्मन अगर अजीज हो
बेकार मत सुना
रूह के भीतर
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बेकार मत
सुना
बेकार मत सुना ये हिकायत इधर-उधर
दौड़ा रही है सब को ज़रूरत इधर-उधर
नाइत्तफ़ाक़ियाँ हैं अगर, मुझ से तो कहे
क्यों बेवजह की है ये शिकायत इधर-उधर
अच्छी हो या बुरी हो तेरे हाथ में है ये
पर फैलनी ज़रूर है शोहरत इधर-उधर
जज़्बात की जहां में कोई अहमियत नहीं
बेमोल बिक रही है मोहब्बत इधर-उधर
मुद्दत से मुंतज़िर हूँ कि नज़रें इधर उठें
पर आप की है नज़रे-इनायत इधर-उधर
हों लाख कोशिशें कि मुझे रोक लें लेकिन
ले जाएगी मुझे मेरी फ़ितरत इधर-उधर
अंदाज़े-ज़िंदगी ही अब ऐसा हुआ है "होश"
भटका रही है शाइरी की लत इधर-उधर
१ सितंबर २०२३
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