अनुभूति में विक्रांत की रचनाएँ
गली में शोर संवेदना सहमा सहमा हम हों तुम हो हिमपात
संवेदना
तुम कहते सावन आया है मैं कहता छत टपक रहा।
तुम कहते मन मोहता बारिश मैं कहता तन भीग रहा।
तुम कहते चलो बागों में मैं कहता साँझ ढल रही।
तुम कहते रमणीक बेला है मैं कहता मृगतृष्णा है।
तुम ही बताओ अब प्रिय कैसी ये संवेदना है।
9 अप्रैल 2007
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