सहमा-सहमा
सहमा-सहमा-सा मैं रहता हूँ
तेरी तस्वीर को दिन रात देखता हूँ
खा जाऊँ इस बार भी मैं न ठोकर
इसलिए सँभल-सँभल कर मैं चलता हूँ
पर्वतों को पार करने की है ख़्वाहिश
इसलिए बादलों से दोस्ती करता हूँ
क्या अपनी तक़दीर मैं बदल पाऊँगा
ये बात मैं दिन रात सोचता हूँ
लगा के दो झूठे पंख आजकल
क्यों आसमान में मैं उड़ता फिरता हूँ
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