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अनुभूति में विजय कुमार सप्पत्ति की रचनाएँ--

छंद मुक्त में-
आँसू
तस्वीर
तू
परायों के घर
सिलवटों की सिहरन
 

  तू

मैं अक्सर सोचती हूँ
कि,
खुदा ने मेरे सपनों को छोटा क्यों बनाया
करवट बदलती हूँ तो
तेरी मुस्कराती हुई आँखे नज़र आती है
तेरी होठों की शरारत याद आती है
तेरे बाजुओ की पनाह पुकारती है
तेरी ना ख़तम बातों की गूँज सुनाई देती है
तेरी क़समें, तेरे वादे, तेरे सपने, तेरी हक़ीक़त...
तेरे जिस्म की खुशबू, तेरा आना, तेरा जाना...
एक करवट बदली तो,
तू यहाँ नही था...
तू कहाँ चला गया...
ख़ुदाया!!!!
ये आज कौन पराया मेरे पास लेटा है...

८ दिसंबर २००८

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