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अनुभूति में विजय कुमार सप्पत्ति की रचनाएँ--

छंद मुक्त में-
आँसू
तस्वीर
तू
परायों के घर
सिलवटों की सिहरन
 


 

  परायों के घर

कल रात दिल के दरवाजे पर दस्तक हुई,
नींद की आँखों से देखा तो,
तुम थी,
मुझसे मेरी नज़्में माँग रही थी,
उन नज़मों को, जिन्हें सँभाल रखा था, मैंने तुम्हारे लिए,
एक उम्र भर के लिए...
आज कही खो गई थी, वक्त के धूल भरे रास्तों में...
शायद उन्हीं रास्तों में...
जिन पर चल कर तुम यहाँ आई हो...
क्या किसी ने तुम्हें बताया नही कि,
परायों के घर भीगी आँखों से नही जाते...

८ दिसंबर २००८

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