अनुभूति में
विजय कुमार सप्पत्ति की रचनाएँ--
छंद मुक्त में-
आँसू
तस्वीर
तू
परायों के घर
सिलवटों की
सिहरन
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आँसू
उस दिन जब मैंने तुम्हारा हाथ
पकड़ा,
तो तुमने कहा... नही..
और चंद आँसू जो तुम्हारी आँखों से गिरे...
उन्होंने भी कुछ नही कहा... न तो नही... न तो हाँ...
अगर आँसुओं कि ज़बान होती तो...
सच झूठ का पता चल जाता...
ज़िंदगी बड़ी है... या प्यार...
इसका फ़ैसला हो जाता...
८ दिसंबर २००८ |