अनुभूति में
विजय कुमार सुखवानी की रचनाएँ--
नई रचनाएँ-
उम्र भर
गुंजाइश रहती है
अंजुमन में-
ख़ास हो कर भी
ज़ख्म तो भर जाते हैं
तेरी बातें तेरा फ़साना
मेरी मेहनतों का फल दे
|
|
ज़ख़्म तो भर
जाते हैं जख्म तो भर
जाते हैं दिल से आह नहीं जाती
उम्र गुजर जाती है जीने की चाह नहीं जाती
दूसरों के ऐब तो इंसां को खूब दिखते हैं
अपनी ख़ामियों पर कभी निगाह नहीं जाती
नफ़रत को कभी दिल में बसने नहीं देना
हर शख़्स को घर में दी पनाह नहीं जाती
बहुत सोच समझ कर सफ़र में पांव रखना
मंज़िल की जानिब हर इक राह नहीं जाती
याद रहे हर किसी से दर्द बांटा नहीं जाता
और हर किसी से ली सलाह नहीं जाती |