अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में विजय कुमार सुखवानी की रचनाएँ--

नई रचनाएँ-
उम्र भर
गुंजाइश रहती है

अंजुमन में-
ख़ास हो कर भी
ज़ख्म तो भर जाते हैं
तेरी बातें तेरा फ़साना
मेरी मेहनतों का फल दे

 

मेरी मेहनतों का फल

मेरी मेहनतों का फल दे
और सुकुँ के चंद पल दे

हर नदी को दे पानी
हर खेत को फ़सल दे

इंसान हो गया हैवान
अल्लाह तू दख़ल दे

इंसानियत से फिर जाऊँ
न मुझको इतना बल दे

दे चार दीवारें और छत
मैंने कब कहा महल दे

मुश्किलों से गुरेज़ नहीं
पर मुश्किलों का हल दे

चैन से सोया है जमाना
कौन नींद में ख़लल दे

बदल दे इंसां की फ़ितरत
मुझे एक ऐसी ग़ज़ल दे

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter