अनुभूति में
विजय कुमार सुखवानी की रचनाएँ--
नई रचनाएँ-
उम्र भर
गुंजाइश रहती है
अंजुमन में-
ख़ास हो कर भी
ज़ख्म तो भर जाते हैं
तेरी बातें तेरा फ़साना
मेरी मेहनतों का फल दे
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मेरी मेहनतों का
फल मेरी
मेहनतों का फल दे
और सुकुँ के चंद पल दे
हर नदी को दे पानी
हर खेत को फ़सल दे
इंसान हो गया हैवान
अल्लाह तू दख़ल दे
इंसानियत से फिर जाऊँ
न मुझको इतना बल दे
दे चार दीवारें और छत
मैंने कब कहा महल दे
मुश्किलों से गुरेज़ नहीं
पर मुश्किलों का हल दे
चैन से सोया है जमाना
कौन नींद में ख़लल दे
बदल दे इंसां की फ़ितरत
मुझे एक ऐसी ग़ज़ल दे |