अनुभूति में
विजय कुमार सुखवानी की रचनाएँ--
नई रचनाएँ-
उम्र भर
गुंजाइश रहती है
अंजुमन में-
ख़ास हो कर भी
ज़ख्म तो भर जाते हैं
तेरी बातें तेरा फ़साना
मेरी मेहनतों का फल दे
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गुंजाइश रहती है
नफरत में प्यार की गुंजाइश रहती है
इनकार में इकरार की गुंजाइश रहती है
दुनिया में कोई शय मुकम्मल नहीं होती
हर शय में सुधार की गुंजाइश रहती है
दुश्मन को कभी कमजोर मत समझना
हर जीत में हार की गुंजाइश रहती है
रिश्ते तो बस कांच की मानिंद होते हैं
इनमें हमेशा दरार की गुंजाइश रहती है
दिल से चाहो तो माहौल बदल सकता है
हर सूरत में क़रार की गुंजाइश रहती है
बड़ी फिसलन होती है शिखर की राह में
हर चढ़ाव पर उतार की गुंजाइश रहती है
२९ सितंबर २००८ |