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अनुभूति में विजय कुमार सुखवानी की रचनाएँ--

नई रचनाएँ-
उम्र भर
गुंजाइश रहती है

अंजुमन में-
ख़ास हो कर भी
ज़ख्म तो भर जाते हैं
तेरी बातें तेरा फ़साना
मेरी मेहनतों का फल दे

 

ख़ास होकर भी

ख़ास होकर भी खुद को आम रखना
नज़र में सुबह के साथ शाम रखना

दिल तो बना है मुहब्बत के वास्ते
ना कभी इसमें कोई इंतकाम रखना

दोस्तों से दोस्ती तो जरूरी है मगर
दुश्मनों से भी दुआ सलाम रखना

खुशियों के साथ गम भी आएँगे
सब के रहने का इंतज़ाम रखना

मुश्किल होता है ख़ता क़बूल करना
आसां होता है मगर इल्ज़ाम रखना

जब भी हो कोई फ़ैसला करना
ज़ेहन में सूरतें तमाम रखना

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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