अनुभूति में
सीतेश चंद्र श्रीवास्तव की रचनाएँ -
छंदमुक्त में-
अस्तित्व
कौन है जो मेरी बात सुने
द्वंद्व
ऋण |
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ऋण
उन्नीस वर्ष सजा दिये आज आल्मारी पर
और बीस को है फिर शर्तों पर उधार लिया
उड़ती निगाह जो डाली मैंने पुरानों पर
बस लगा कि केवल सबको बेकार किया।
फिर खायी है झूठी कसम ईश्वर के सामने
कि झटक सकूँ उनकी झोली से एक और वर्ष
क्या वह अनभिज्ञ है कि
फिर बख्शा एक वर्ष श्याम ने
और फिर मेरे पापों के बीच मुझे दिया हर्ष।
हर वर्ष यही होता है हम झूठे वायदे करते हैं
बकाया वायदों का हुजूम रहता है सामने
इसलिये अंत में तड़प-तड़प कर मरते हैं
पापों का मजमून फिर भी रहता है सामने।
ऊपरवाला कितना दयालू महाजन है
देता है भरपूर समय ऋण उतारने का
और हम सब जो महासज्जन हैं
लेते हैं भरपूर समय जीवन बिगाड़ने का।
ऋण में पायी हुयी जिंदगी का सदुपयोग करें
भर लें इस में मधुर-मधुर मुस्कान
रह कर यहाँ बस सभी से सहयोग करें.
पलक झपकते हो जाये जीवन देवों समान |