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अनुभूति में सीतेश चंद्र श्रीवास्तव की रचनाएँ -

छंदमुक्त में-
अस्तित्व
कौन है जो मेरी बात सुने
द्वंद्व
ऋण

कौन है जो मेरी बात सुने 

कौन है जो मेरी बात सुने
मौन है जो मेरी बात सुने।
जीवन के दिये में आत्मा की बाती
एकाकी रह ही नहीं पाती।  
अँधेरे और उजाले को चीर कर
जलता रहता हूँ मैं
चाँद रात मुझे तकता है
अपनी चाँदनी की ठंडक से
सहलाता-बहलता है
संसार की तमाम रौशनियाँ  
जिसके आगे फीकी  
उसने मेरे सौभाग्य की किरण नहीं फेंकी।
सूरज का अघात प्रकाश
भी जब तक उम्मीद बँधाता
अस्त हो जाता है
यात्री चलता रह जाता है।

कौन है जो मेरी बात सुने  
मौन है जो मेरी बात सुने।  
निस्तब्ध दरख्त जलाशय सुमन  
शाम का धुँधलका  
घरों को लौटते लोग  
आखों मे उल्लास  
अपनों के पास।  
बागो मे अपनों के बीच  
निडर पुलकित शिशु-शावक भाँति  
करते किल्लोल  
हे प्रकृति प्रभुकृति
तु ही मुझसे कुछ बोल

कौन है जो मेरी बात सुने 
मौन है जो मेरी बात सुने।
भौतिकता का आवरण चारों ओर  
मौलिकता का नहीं ओर-छोर  
निन्यान्बे का फेर, अन्तहीन 
सौ को होते, देखा नही। 
अपनों को अपनों के खंजर  
बस अवसर की ताक में  
राख हूँ किसी की आँख में  
आ जिन्दगी, मुझे भस्म की तरह धारण कर 
मुझे अपने ललाट की शोभा बना  
मेरे साथ तप कर कि बन सकें हम पूरक  
अपनी कमियों, खुशियों के 
ओर प्राप्त हों उस सीमा को  
जो संबंधो में अनन्तिम हो।  
मेरा स्वर दूर हवा में विलीन हो गया  
मैं बहुप्रतीक्षित, रह गया  
अपने आप में  

कौन है जो मेरी बात सुने
मौन है जो मेरी बात सुने।

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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