अनुभूति में
सीतेश चंद्र श्रीवास्तव की रचनाएँ -
छंदमुक्त में-
अस्तित्व
कौन है जो मेरी बात सुने
द्वंद्व
ऋण |
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द्वंद्व
मैं तुम्हारा हूँ, इसका माँगा है प्रमाण
तुमने नित्य नवीन हर वक्त कैसे बोलूँ वह भाषा, असीम
प्रेम तो व्याख्या रहित है
शब्दो से उसे नाप नहीं पाऊँगा
नयन अभिव्यक्ति कर नहीं पाएगें
शरीर कभी न कभी ठंडा हो जाएगा।
और रह जाएगा प्रश्न यथा का यथा
नित्य नवीन प्रमाण की व्यथा।
अन्यथा क्या तुम्हारा न रहूँगा
प्रेम जल तुम्हें छल जाएगा
या अग्नि मे स्वप्न तुम्हारा जल जाएगा?
वस्तुतः प्रेम मात्र भ्रम है
मायावी है, छलावों का क्रम है।
प्रेम पाश है, उसकी तलाश है।
जो कभी नहीं मिलता
जहाँ चाहो वहाँ नहीं मिलता
जहाँ मिलता है वहाँ
अपनाया नहीं जाता।
धिक्कार है विधाता बता
यह जीवन किस प्रयोजन
न निगलते बने न उगलते
छल में प्रेम के सुलगते
रहें अब और कितना |