अनुभूति में
सीतेश चंद्र श्रीवास्तव की रचनाएँ -
छंदमुक्त में-
अस्तित्व
कौन है जो मेरी बात सुने
द्वंद्व
ऋण |
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अस्तित्व
सड़क कभी समाप्त नहीं होती
किसी में मिल जाती है-
मनुष्य मृदा लीन हो जाता है
किसी से नहीं मिल पाता है
उसकी खोज खाज की तरह
उसे खाती डराती है
कि उसका अस्तित्व संकट में
सदा और मानव रहता है
बड़ा
अपने भय से
भय एक सत्य है
दो रूप लिये
मृत्यु और आत्मविश्वास।
देखा है दोनों से लड़ना
मृत्यु से लड़ना जुआ है तो
आत्मविश्वास से लड़ना? आशा
और आशा का अस्तित्व निराशा।
सड़क पर गाड़ियों की कतार
भीड़ की भीड़
ज्वार-भाटे की तरह
लपकती-लौटती है
रात-दिन एक करती
कभी न थमती है
क्योंकि
अस्तित्व का भय
सताता है नींद में भी
चैन में भी-
सब दौड़ रहे हैं
क्षणिक गंतव्यों तक
नहीं पता-
अंततोगत्वा कहाँ
यह नहीं पता, देता है
जन्म, आजन्म संभावनाओं को
और मैं संभावनाओं का बीज हूँ
उपायों का आधार
युक्तियों की प्रयोगशाला
ईश्वर से साभार
मैं मानव हूँ मिट्टी का पुतला।
उसी में मिल जाने तक
लड़ता रहूँगा अस्तित्व की लड़ाई
सो एक विज्ञापन-
चाहिये दृढ कंधे
विशाल ह्रदय
संवेदनायें
संसूचन एवं प्रेम मुझे। |