अनुभूति में
संजय पुरोहित
की रचनाएँ-
कोई तो है
भीगे अख़बार सा मैं
रे मानव
लो फिर आ गई कालिमा
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लो, फिर आ गई कालिमा
फिर सुनाई देने लगा हैं,
गुंजन बिसरे पलों के झींगुरों का
फिर से लगा है दिखने,
टिमटिमाना यादों के जुगनुओं का
गुंफित फिर होने लगा हृदय
कहे-अकहे भावों से
स्मृतियाँ लेती अंगड़ाइयाँ फिर
हो रही तत्पर
लेने मुझे आगोश में
छोड़ आया था मैं जिन्हें
दूर, बहुत दूर
शून्य के बियाबान में,
सहसा मैंने पाया
स्वयं को मनुमंच पर
देखते ही देखते
पात्र आए खेलने
उभरा हुआ-सा मेरा अतीत
खेल रहा है आज से
आज की अठखेलियों पर,
मुसकुराता-सा कल
इस खेल का मैं अनाड़ी
रह गया निर्लिप्त केवल
२१ अप्रैल २००८
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