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अनुभूति में संजय पुरोहित की रचनाएँ-

कोई तो है
भीगे अख़बार सा मैं
रे मानव
लो फिर आ गई कालिमा

 

भीगे अख़बार-सा मैं

भीगे अख़बार-सा मैं,
पड़ा रहा, पड़ा ही रहा
पढ़े जाने की ललक लिए
लेकिन न उठाया किसी ने
हो आशंकित न हो जाऊँ
तार-तार
प्रतीक्षा में नव किरणों को
सोख लेने की

लिए शब्दों के ज़खीरे
पड़ा रहा, पड़ा ही रहा

अपने में समेटे,
कुछ गुज़रे कल, कुछ बहके पल
कुछ रेखाएँ रंगीन, कुछ श्वेत औ' श्याम
कुछ योजनाएँ, कुछ घोषणाएँ
कुछ शुभ कामनाएँ, कुछ संवेदनाएँ
समेटे हुए आँचल में अपने
पड़ा रहा, पड़ा ही रहा
भीगे अखब़ार-सा मैं

२१ अप्रैल २००८

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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