स्वप्निल
प्रेम
एक सपना बनकर
उतर सकती हो
तुम उतनी ही गहराई में
जितनी गहराई से
तुम मुझमें उतरना चाहती हो
मैं रात्रि के अँधेरे में
सोते समय भी
अपनी पलकें खुली रखूँगा
तुम उतर आना मुझमें
मेरी आँखों के रास्ते
अपने कमरे की खिड़की से
घर की दहलीज लाँघ
हम दोनों जी लेंगे एक दूसरे को
हम दोनों जीते रहेंगे एक दूसरे को
हर रात, स्वप्न टूटने से पहले।