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अनुभूति में संजय पाल शेफर्ड की रचनाएँ

छंदमुक्त में-
असीम यंत्रणाएँ
प्रकृति की गोद
स्वप्न जो जिंदा हैं
स्वप्निल प्रेम
सूखे हुए होंठ

 

स्वप्न जो जिंदा हैं

स्वप्न जो जिंदा हैं
हमें वास्तविकता की तरफ ले जाएँगे
स्वप्न जो टूट गए
बिखरने से पहले
जीवन का अहसास कराएँगे
मैं बढ़ रहा हूँ
उन जर्जर हो चुके रास्तों पर
जिनके सिर्फ निशान बाकी हैं
चारकोल की सड़कें भी ख़त्म होने को हैं
मैं बढ़ रहा हूँ
कुछ और दरवाजे खुलेंगे
आप मेरे साथ आना चाहेंगे
मैं जनता हूँ
हरगीज नहीं आएँगे
मौत कुछेक को ही प्यारी लगती है
नई दुनिया में
दरवाजों के खुलने का मतलब
मौत के आगे का जीवन ही तो है ?

२ सितंबर २०१३

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