अनुभूति में संदीप रावत
की रचनाएँ-
नई रचनाओं में-
दो कैदी
पिताओं को कन्यादान करते
मैंने दूरबीनों से
यातना
सैलानियों के मौसम
हैंग टिल डेथ
छंदमुक्त में-
कविता
टूटन
पत्ते
मुझे अफ़सोस है
हवा और धुआँ |
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सैलानियों के मौसम
तुमने सैलानियों के
स्वरों से गूँजते मौसम देखे होंगे
मगर
क्या सुना है तुमने
मुसाफ़िरखानों के सन्नाटों का कोई सीजन
इंतज़ार की सख्त बेंच पर बैठे
गहरी ऊब से भरे
रसोइयों की आँखों में देखा है
अपना आशियाँ संग संग लिये
ओ! सैर करते सैलानी
मुझे मेरा तिनको का घरौंदा बहुत याद आता है
फिकर होती है
आओ! आओ बैठो
रोटी -सब्ज़ी -दाल -चावल -रायता -खीर
स्वादिष्ट थाल है यहाँ
न ना, ये न कह सकूँगा
तुमसे
कि घर गये अरसा हुआ
खबर जो फ़ोन पर मिल जाती है कभी
मैं जानता हूँ खबर उनकी वो नहीं होती
ये कैसे मुमकिन है भला
कि जैसा छोड़ जाओ तुम किसी को
वो उसी हाल में रहे सदा
न..ना..न दिखा सकूँगा तुम्हें
किस कदर ताश के पत्ते
लूडो के गत्ते घिस चुके हैं
बाज़ियाँ, मगर खत्म नहीं होतीं
ओ! सैलानी
आओ बैठो
कहो कहाँ से आये हो-ठहरे कहाँ हो
घूम आये कहाँ कहाँ२० जनवरी २०१४ |