अनुभूति में संदीप रावत
की रचनाएँ-
नई रचनाओं में-
दो कैदी
पिताओं को कन्यादान करते
मैंने दूरबीनों से
यातना
सैलानियों के मौसम
हैंग टिल डेथ
छंदमुक्त में-
कविता
टूटन
पत्ते
मुझे अफ़सोस है
हवा और धुआँ |
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पत्ते दिल में
यही हसरत सँजोए
शाखों से
उतर आए ज़र्द पत्ते...
और इसी उम्मीद पे
करते रहे इंतज़ार-
कि शायद
किसी शायर की नज़र पड़ जाए
उन पर
और वो किसी अफसुर्द सी ग़ज़ल का
कोई काफ़िया उनके नाम कर दे !
किसी नज़्म का
उन्वान ही दे दे...
या फिर किसी तस्बीह में
मुस्तकिल करके
ज़िक्रे -ज़िन्दगी ...
ज़िक्रे -उल्फत करे !! ८ अप्रैल २०१३ |