अनुभूति
में राम संजीवन वर्मा की रचनाएँ-
छंदमुक्त में-
माँ का प्यार
यादें
मज़दूर
जेहाद
तो बुरा मान गए
नन्हीं परी
|
|
नन्हीं परी
वो एक नन्हीं सी परी
जब तुतला कर बोलती है
न जाने कितनी मिठास है उसकी बातों में
जैसे मिश्री की डली घोलती है
कितनी मासूम है वो नन्हीं परी
लगता है जैसे मिश्री हो भरी
रोने लगे तो समन्दर भी शरमाए
हँसती है तो मेरा दुःखी मन भाग जाए
बातें उसकी जैसे हो हमारी दादी माँ
उसकी बातों से डरती है उसकी भी माँ
बिगड़ जाये तो मेरा मन घबराये
ना जाने कौन सी फरमाइश वो कर जाये
वो है मेरी नन्हीं परी
वो तो है मेरी फुलझड़ी
८ नवंबर २००१ |