अनुभूति
में राम संजीवन वर्मा की रचनाएँ-
छंदमुक्त में-
माँ का प्यार
यादें
मज़दूर
जेहाद
तो बुरा मान गए
नन्हीं परी
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तो बुरा मान गये
कभी सीने से उनको लगाया ही न था
कोई गीत अभी गुनगुनाया ही न था
कोई साज अभी बजाया ही न था
कि वो बुरा मान गये
गुलाबी रंग उन पर अभी डाला ही न था
राज इस दिल का अभी खोला ही न था
अभी तो उनको टटोला ही न था
कि वो बुरा मान गये
वो रात मिलन की आई भी न थी
थी तो पास मगर तन्हाई न थी
अभी मुख से मैं कुछ बोला ही न था
कि वो बुरा मान गये
कभी नैनों से नैन टकराये भी न थे
इक दूजे के करीब कभी आए भी न थे
मिलकर साथ कोई गीत गाए भी न थे
कि वो बुरा मान गये
८ नवंबर २००१ |