अनुभूति में
ऋतेश खरे की
रचनाएँ-
छंदमुक्त
में-
ज़िंदगी के इस सफ़र में
मिट्टी से मिलकर
पतझड़ की गुहार
मुश्किलों में
हाथ में हाथ |
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ज़िंदगी के इस
सफ़र में
ज़िंदगी के इस सफ़र में,
जब चले हम दिल के गाँवों से
ऊँची–नीची पगडंडियाँ थीं,
पक्की सड़क से अभी दूरियाँ थीं
जब उतरे कदम महानगर में,
पंख फैला के उड़ते गए हम
जान–पहचान के कुछ आसमाँ थे,
अंजान धरती से जुड़ते गए हम
एक मंज़िल का दर खुला जो,
बन के रस्ता आ मिली पाँवों से
काम आईं जो ख़ूबियाँ थीं,
दूर होती मजबूरियाँ थीं।
९ नवंबर २००६ |