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अनुभूति में राजीव कुमार श्रीवास्तव
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यकीन

सितारों से भी आगे‚ कहीं ज़मीं है शायद।
इतना हासिल है फिर भी‚ कुछ कमी है शायद।

खुद पे यकीन करके‚ आगे कदम रखा।
कि इस बंज़र जमीन में भी‚ थोड़ी नमी है शायद।

मंज़िल को भी तलाशा मैंनें‚ इसी यकीन से।
कि इन अँधेरों में भी कहीं पे, रौशनी है शायद ।

उस यकीन के बदौलत‚ ये यक़ीं नहीं होता।
वो हमीं हैं या कोई और‚ हाँ, हमीं है शायद।

२४ अप्रैल २००३

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